Poetry

Hindi poetry on father

 Hindi poetry on father



पिता पर हिंदी कविता


"पिता "


लोग कहते हैं , मैं अपने पापा जैसे दिखती हूँ,
एक बेटे सा भरोसा था उनको मुझपर
मैं खुद को भाग्यशाली  समझती हूँ।

मैं रूठ जाती थी उनसे, जब वो मेरे गिरने पर उठाने नहीं आते थे
पर आज समझती हूँ , वो ऐसा क्यों करते थे
आज मैं अपने पैरों पे हूँ  , उसी वजय से
दे कर सहारा वो मुझे हमेशा के लिए कमज़ोर कर सकते थे।
जीवन की कठनाइयों में गर मुझको सहारों की आदत हो जाती
तो मैं गिर कर कभी खुद संभल नहीं पाती
मेरे आत्मविश्वास को सबल किया उन्होंने
तब ही आज मैं खुद अपने निर्णय ले पाती हूँ
और बिन सहारे चल पाती हूँ

 मैं उनसे कुछ भी कह सकती थी
वो एक दोस्त सा मुझको समझते थे
हम भाई बहन  से लड़ते भी थे
वो उस पल मेरे संग बच्चा हो जाते थे
होती थी परेशान जब कभी
तो वो एक गुरु की तरह सही दिशा दिखाते थे
ऐसा था  रिश्ता था हमारा
इस जहान में सबसे अलग सबसे प्यारा
काश एक रिसेट बटन होता ज़िन्दगी में
और मैं उनको वापस ले आती
उस जहान से जहाँ से लोग जा कर वापस नहीं आते


एक बेटी के जीवन में
पैरों तले  ज़मीन और सर पर छत सा होता है "पिता "
भले और रिश्ते भी हैं मेरे दायरे में
पर एक बेटी की पहचान होता है "पिता "
वो मुझको अगर आज भी देखते होंगे
तो मुझपे गुमान तो करते होंगे
की कैसे उनके सिखाये सूत्रों को अपनाकर
मैं अकेले बढ़ती जा रही हूँ
गिरती पड़ती और संभलती
अपनी मंज़िल तक का सफर  खुद बुनती जा रही हूँ
आज न पैरों तले ज़मीन रही
और न सर पर पितारूपी छत
फिर भी आज भी उनकी ऊँगली थामे बढ़ती जा रही हूँ।

लोग कहते हैं , मैं अपने पापा जैसे दिखती हूँ,
एक बेटे सा भरोसा था उनको मुझपर
मैं खुद को भाग्यशाली  समझती हूँ।



    अर्चना की रचना  "सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास" 










Hindi poetry on father  Hindi poetry on father  Reviewed by Archana7p on November 20, 2019 Rating: 5

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