प्यार पर हिंदी कविता
तेरा तलबगार
जाओ अब तुम्हारा इंतज़ार नहीं करूंगी
के अब खुद को मायूस बार बार नहीं करूंगी
बहुत घुमाया तुमने हमें अपनी मतलबपरस्ती में
के अब ऐसे खुदगर्ज़ से कोई सरोकार नहीं रखूंगी
रोज़ जीते रहे तुम्हारे झूठे वादों को
के अब मर के भी तुम्हारा ऐतबार नहीं करूंगी
तरसते रहे तुझसे एक लफ्ज़ " मोहब्बत "सुनने को
के अब अपने किये वादे पर बरकार मैं नहीं रहूंगी
बहुत दिया मौका तुमको , हमें सँभालने का
के अब खुद सम्भलूँगी पर तेरे उठाने का ख्याल अब नहीं करूंगी
बहुत कुछ हार गए हम तुम्हे अपना समझ कर
के अब खुद अपना गुनहगार मैं नहीं बनूँगी
तुझसे पहले मैं आज़ाद थी, मेरी एक राह थी
के अब मेरी बेपरवाह सोच को तेरा गिरफ्तार नहीं रखूंगी
अब जो गए हो तो भूल से भी वास्ता न रखना
के अब तेरा जिक्र जो आया कही पे तो, खुद को तेरा तलबगार नहीं कहूँगी
बहुत अच्छा सिला मिला मुझे तुमसे वफ़ा निभाने का
के अब किसी से जो हुआ प्यार, तो यूं जान निसार नहीं करूंगी
तुम तो आये ही थे जाने के लिए
के अब इस से ज़्यादा तुम्हें बेनकाब नहीं करूंगी
अर्चना की रचना "सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास"
Tera Talabgar Hindi poetry On love
Reviewed by Archana7p
on
November 04, 2019
Rating:
Very nice poem
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