Poetry

Laadli Hindi poetry on Daughters/ save Girl/ women empowerment

Hindi poetry on Women Empowerment

बेटियों पर हिंदी कविता / बेटी बचाओ / महिला सशक्तिकरण


लाडली



मैं  बेटी हूँ नसीबवालो   के घर जनम  पाती हूँ 
कहीं  "लाडली" तो कहीं  उदासी का सबब बन जाती  हूँ 
नाज़ुक से कंधो पे होता  है बोझ बचपन सेकहीं  मर्यादा  और समाज के चलते अपनी दहलीज़ में  सिमट के रह  जाती  हूँ और कहीं ऊँची उड़ान को भरने अपने सपने को जीने का हौसला पाती हूँ मैं  बेटी हूँ नसीबवालो के घर जनम  पाती हूँपराया धन समझ कर पराया  कर देते हैं  कुछ मुझको बिना छत के मकानो से बेगाना कर देते  हैं  कुछ मुझको और कहीं घर की रौनक सम्पन्नता समझी  जाती  हूँ मैं  बेटी हूँ नसीबवालो के घर जनम  पाती हूँहै अजब विडंबना  ये न पीहर मेरा ना पिया घर मेराजहाँ अपनेपन  से इक उमर गुजार आती  हूँ फिर भी  घर-घर नवदीन पूँजी  जाती  हूँ मैं  बेटी हूँ नसीबवालो के घर जनम  पाती हूँहैं महान  वो माता-पीता जो करते  हैं दान बेटी का अपने कलजे के टुकड़े को विदा करने की नियति का क्योक़ि  ये रीत चली आयी है  बेटी है तो तो विदाई हैफिर भी मैं सारी  उमर माँ - बाबा की अमानत कहलाती हूँ मैं  बेटी हूँ नसीबवालो के घर जनम  पाती हूँहै कुछ  के नसीब अच्छे जो मिलता  है परिवार उनको घर जैसा वरना कहीं तो  बस नाम के  हैं  रिश्ते  और बेटियां बोझ समझी जाती  हैं काश ईश्वर देता अधिकार  हर बेटी को अपना घर चुनने काजहां  हर बेटी नाज़ो से पाली  जाती  है और "लाडली" कहलाती है और "लाडली" कहलाती है..... 


 अर्चना की रचना  "सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास"  


Laadli Hindi poetry on Daughters/ save Girl/ women empowerment   Laadli Hindi poetry on Daughters/ save Girl/ women empowerment Reviewed by Archana7p on August 23, 2019 Rating: 5

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