जीवन और पाखंड पर हिंदी कविता
" चिकने घड़े"
कुछ भी कह लो
कुछ भी कर लो
सब तुम पर से जाये फिसल
क्योंकि तुम हो चिकने घड़े
बेशर्म बेहया और कहने को
हो रुतबे में बड़े
उफ्फ ये चिकने घड़े
बस दूसरों का ऐब ही देखता तुमको
अपनी खामियां न दिखती तुमको
पता नहीं कैसे आईने के सामने हो
पाते हो खड़े
क्योंकि तुम हो चिकने घड़े
दूसरों का हक़ मार लेते हो
अपनी चिंता में ही जीते हो
चाहे कितनी विपदा किसी पर
न आन पड़े
तुमसे एक चव्वनी भी न निकले
क्योंकि तुम हो चिकने घड़े
संस्कार और कर्म की देते हो दुहाई
अपने कर्म देखते तुमको लज़्ज़ा भी न आई
दिखावे और झूठ की आड़ में
हर बार अपना बचाव करने को रहते
हो अड़े
क्योंकि तुम हो चिकने घड़े
ये कैसा तुम्हारा प्रबंधन है
अपने कर्तव्यों का भान नहीं
ऊपरी चोला तो चमक रहा , पर भीतर
तुम्हारे विचार हैं सड़े
क्योंकि तुम हो चिकने घड़े
उजाले में दिया जलाते हो
और मंदिर का दीपक बुझाते हो
कुल के नाम पर बेटा बेटी में
लकीरे खींच जाते हो
तुम्हारी मती पर हैं पत्थर पड़े
क्योंकि तुम हो चिकने घड़े
चाहे जितने आडम्बर कर लो
चाहे जितनी पूजा कर लो
जिस दिन हिसाब होगा तुम्हारे
कर्मो का उस दिन
ईश्वर भी कहेंगे
शब्दों में कड़े
बहुत मौके दिए मैंने तुमको
फिर भी तुमने अपने
रंग ढंग न बदले
क्योंकि तुम हो चिकने घड़े
अर्चना की रचना "सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास"
Chikne Ghade Hindi poetry on life and hypocrisy
Reviewed by Archana7p
on
September 27, 2019
Rating:
Buhat achi kavita hai.... Kitni sachhai hai aapke in lafzon mei
ReplyDeleteji bahut dhnyawad apka ki ap meri rachna se khud ko ya manav paristhiti se jod pati hain..ye meri liye bahut badi kripa hai
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