हिंदी कविता जीवन पर
ज़िन्दगी का उपकार
अपने कल की चिंता में
मैं आज को जीना भूल गया
ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है
मैं उसको जीना भूल गया
खूब गवाया मैंने चिंता करके
जो मुझे नहीं मिला उसका गम कर के
अपने कल की चिंता में
मैं अपनी चिंता भूल गया
ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है
मैं उसको जीना भूल गया
जब तक मैं आज़ाद बच्चा था
मुझे तेरी परवाह न रहती थी
सब रहते थे मेरी चिंता को
मुझे तेरी चिंता न रहती थी
पर जब मैं बड़ा हुआ
कॉलेज और किताबों में खो गया
पैर ज़माने की होड़ में अपना
आज़ाद बचपन भूल गया
ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है
मैं उसको जीना भूल गया
जब कभी अपनी बालकनी में
मैं एक प्याला चाय ले के बैठता हूँ
तेरी खूबसूरती देख कर
अपना दिल दे बैठता हूँ
सारी चिंता भूल जब मैं
जब तुझको महसूस करता हूँ
तू मुझको धूली धुली सी लगती है
जैसी नयी पोशाक में कोई प्यारी
सी बच्ची लगती है
तेरी मासूमियत देख के
मैं सारी चिंता भूल गया
ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है
मैं उसको जीना भूल गया
क्या मिला मुझे तुझसे जुदा हो के
जो नहीं है मेरे वश में उस कल
की चिंता कर के
रोज़ गवाया मैंने तुझे हर
चाँद रातों में
जब मैं ऑफिस से आता था
और थक कर सो जाता था
कभी न सोचा मैंने
तेरे साथ भी थोड़ा वख्त
गुजारूं
तू भी तो अकेली पड़ गयी
होगी मुझ बिन
तेरे साथ भी थोड़ी गुफ्तगू कर लूँ
कुछ तुझ से सुनूँ , कुछ अपने दिल की
कह लूँ
कभी तेरा हाथ थाम
इन चिंताओं से किनारा कर लूँ
तू मुझे अच्छे दोस्त की तरह
हर बार माफ़ कर देती है
तेरा बड़प्पन देख कर
मैं सारी चिंता भूल गया
ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है
मैं उसको जीना भूल गया
ठंडी हवा के झोंके सी
तू मुझको राहत देती है
एक माँ के तरह तू मुझे
अपने गोद में सुला लेती है
नींद में ही सही मैं तुझको
जी भर जी लेता हूँ
तेरा उपकारी हूँ मैं
जो कुछ वख्त के लिए ही सही
मैं अपनी सारी चिंता भूल गया
ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है
मैं उसको जीना भूल गया
कुछ वख्त गुज़ार कर तेरे साथ
मैं फिर इन्ही चिंताओं में
घिर जाता हूँ
और यही कहता रहता हूँ
अपने कल की चिंता में
मैं आज को जीना भूल गया
ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है
मैं उसको जीना भूल गया
अर्चना की रचना "सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास"
Zindagi ka Upkar Hindi poetry On life
Reviewed by Archana7p
on
October 02, 2019
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