महिला सशक्तिकरण / बेटी बचाओ पर हिंदी कविता
मेरी ज़िन्दगी का रावण
मेरी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं
मान मर्यादा लोक लाज
के बंधन अब मुझे
भुलाने हैं
मैं प्यारी और दुलारी थी
जब तक अपनी
उपेक्षा सेहती रही
तुम्हारे बेटा बेटी के दुर्भाव में
मैं अपने अधिकार छोड़ती रही
तुम्हारी इस मानसिक सोच
से मुखौटे अब हटाने हैं
मेरी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं
तुम माँ तो बहुत अच्छी हो
मगर सिर्फ अपने बेटे की
तुम्हारी पढाई लिखाई को अपनी
तुच्छ सोच के आगे तुमने
तिलांजलि दी
कभी तुमने सोचा के एक बेटी के प्रति
फ़र्ज़ भी तुमको निभाने हैं
मेरी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं
माँ का पंडाल सजाते हो
पर अपनी बेटी के कठिन
जीवन का तनिक भी भान नहीं
औरत हो के औरत का दुख
न समझो तुम इतनी नादान नहीं
ये हाथी के दाँत तुम्हे औरों
को जो दिखाने हैं
मेरी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं
मेरी परवाह में खुलती तो
मेरा जीवन कुछ और ही होता
ये कटु सत्य है मेरे जीवन का
सिर्फ जन्म देने से कोई
माँ बाप नहीं होता
अब इसी कड़वे घूँट
के साथ जीवन मुझे बिताने है
मेरी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं
तुम धनवान हो के भी
उस से कही गए बीते हो
जिसे निर्धन हो के भी
अपने फ़र्ज़ निभाने आते हैं
जो गरीब हो के भी बेटी को
सारे शगुनों से पालते और ब्याहते हैं
मेरी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं
जो अपने सिर्फ औपचारिकता
ही निभाते हैं
परायी आग में क्यों कूंदूँ
ये कह कर सिर्फ अपने घरों
में बातें बनाते हैं
अब उनसे नाम के ये रिश्ते
मुझे मिटाने हैं
मेरी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं
जिस राज कुंवर ने अपने पैसों
से एक झोपड़ा तक बनवाया नहीं
सिर्फ चांदी का चमचा ले के
पैदा हुआ
कभी खून पसीना बहाया नहीं
पिता जी ने खूब कमाया
उनका धन संचय उस कपूत के काम आया नहीं
अब उसकी बेगैरत ज़िन्दगी के दर्शन
सबको करवाने हैं
मेरी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं
मैं अपना अधिकार लेने
निकली हूँ
जिसके न मिलने का मुझे
अफ़सोस न होगा
होगा पश्चाताप तुम्हे जिन दिन
अपने कर्मो पर
वो मंज़र कुछ और ही होगा
अब तुम्हारी झूठी दलीलों
से लोगो को उजागर कराने हैं
मेरी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं
जिस कुल की प्रतिष्ठा
को बचाती रही एक बेटी
रही अपनी मर्यादा में
अपने रास्ते खुद तलाशती
रही एक बेटी
अब उसे ये लोक लाज
बंधन तोड़
कुछ फ़र्ज़
खुद के लिए भी निभाने हैं
मेरी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं
अब संस्कारों का हवाला
दे मुझे कोई रोके न
शुभ काम पे निकली
हूँ कोई मुझे टोके न
क्योंकि अब संस्कार मुझे
तुम्हारा किरदार देख के
निभाने हैं,
मेरी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं
मान मर्यादा लोक लाज
के बंधन अब मुझे
भुलाने हैं
अर्चना की रचना "सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास"
meri Zindagi ke ravan Hindi poetry on women empowerment/save girl
Reviewed by Archana7p
on
October 12, 2019
Rating:
Aweaome kavita
ReplyDeleteThank you
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