Poetry

main samundar hoon Hindi poetry on nature and human philosophy

Hindi poetry on nature and human



प्रकृति और मानव दर्शन पर हिंदी कविता


मैं समंदर हूँ





मैं समंदर हूँ
ऊपर से हाहाकार 
पर भीतर अपनी मौज़ों 
में मस्त हूँ 
मैं समंदर हूँ 

दूर से देखोगे तो मुझमें 
उतर चढ़ाव पाओगे 
पर अंदर से मुझे 
शांत पाओगे 
मैं निरंतर बहते रहने 
में व्यस्त हूँ 
मैं समंदर हूँ 

ऐसा कुछ नहीं जो 
मैंने भीतर छुपा रखा हो
जो मुझमे समाया 
उसे डूबा रखा हो 
हर बुराई बाहर निकाल 
देने में अभ्यस्त  हूँ 
मैं समंदर हूँ 

हूँ विशाल इतना के 
एक दुनिया है मेरे अंदर 
जो आया इसमें , उसका 
स्वागत है बाहें खोल कर 
अपना चरित्र बनाये 
रखने में मदमस्त हूँ 
मैं समंदर हूँ 

लोगों के लिए खारा हूँ 
पर तुम बने रहो उसके 
लिए सब हारा हूँ 
बदले में तुमने जो 
दिया उस से अब मैं 
त्रस्त  हूँ
मैं समंदर हूँ

मैं समंदर हूँ 
ऊपर से हाहाकार 
पर भीतर अपनी मौज़ों 
में मस्त हूँ 
मैं समंदर हूँ


अर्चना की रचना  "सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास" 


main samundar hoon Hindi poetry on nature and human philosophy  main samundar hoon Hindi poetry on nature and human philosophy Reviewed by Archana7p on October 12, 2019 Rating: 5

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