Poetry

Hindi poetry on Expectations

Hindi poetry on Expectations



अपेक्षाओं पर हिंदी कविता


उमीदों का खेल 





क्या ज़्यादा बोझिल है
जब कोई  पास न हो
या कोई पास हो के भी
पास न हो ?

कोई दिल को समझा  लेता है
क्योंकि,उसका कोई अपना
है ही नहीं
पर कोई ये भुलाये कैसे
जब उसका कोई अपना
साथ हो के भी साथ न हो

जहाँ चारो ओर चेहरों
की भीड़ हो अपनापन ओढ़े
अपनी ज़रूरत पर सब दिखे
पर गौर करना, जब तुमने पुकारा
तो कोई मसरूफ न हो

कोई अकेला हालातों से
लड़ भी ले
पर जब हो किसी का
हाथ सर पर
पर वो हाथ वख्त आने पर मदत के
लिए बढ़ा  न हो

 जिन्हें आदत है अकेला
रहने की
उन्हें पता है के अंधेरो में
परछाइयाँ छोड़ जाती है
रात कितनी  भी घनी  हो  सुबह हो ही जाती है
पर जो ख़ौफ़ज़दा है अंधेरो से, ज़रा
इत्मिनान तो कर ले, कहीं
 सरहाने रखा  चराग बीच रात
बुझा न हो

 ये सब उमीदों का खेल है
साहब
जब कोई पास नहीं होता
तो उम्मीद सिर्फ खुद
से होती है
पर बेज़ार होता है दिल तभी,
जब कोई  लौटा, किसी के दर से मायूस न हो

मुश्किल है  बिना उम्मीद वो लकड़ी
बनना
जो डूबती नहीं नदी के बहाव के साथ
बहती जाती है
वो तैरती रहती है ऐसे
बिना उम्मीद रिश्ते  के जैसे
जिसमे सांस तो हो
पर जान न हो

हां ये सच है, दिल है तो उम्मीद भी होगी
और टूटने पे तकलीफ भी होगी
गर इन उमीदों को कर लोगे थोड़ा कम
तो यही ज़िन्दगी हसीन भी होगी
वरना  बदल देना मेरा नाम
अगर ये ज़िन्दगी का सफर  यादगार न हो



अर्चना की रचना  "सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास"




Hindi poetry on Expectations Hindi poetry on Expectations  Reviewed by Archana7p on November 06, 2019 Rating: 5

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