मानव प्रकृति पर हिंदी कविता
" पथिक " की " प्रकृति "
मेरी छाँव मे जो भी पथिक आया
थोडी देर ठहरा और सुस्ताया
मेरा मन पुलकित हुआ हर्षाया
मैं उसकी आवभगत में झूम झूम लहराया
मिला जो चैन उसको दो पल मेरी पनाहो में
उसे देख मैं खुद पर इठलाया
वो राहगीर है अपनी राह पे उसे कल निकल जाना
ये भूल के बंधन मेरा उस से गहराया
बढ़ चला जब अगले पहर वो अपनी मंज़िलो की ऒर
ना मुड़ के उसने देखा न आभार जतलाया
मैं तकता रहा उसकी बाट अक्सर
एक दिन मैंने खुद को समझाया
मैं तो पेड़ हूँ मेरी प्रकृति है छाँव देना
फिर भला मैं उस पथिक के बरताव से क्यों मुर्झाया
मैं तो स्थिर था स्थिर ही रहा सदा मेरा चरित्र
भला पेड़ भी कभी स्वार्थी हो पाया
ये सोच मैं फिर खिल उठा
और झूम झूम लहराया ...
अर्चना की रचना "सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास"
Pathik Ki Prakriti Hindi inspirational Poetry on Human's Nature and to move on
Reviewed by Archana7p
on
August 25, 2019
Rating:
Wao awesome madam ji
ReplyDeleteThank u
DeleteNice lines...😊😊. Proud of u..
ReplyDeleteThank u dear
Deleteअति सुंदर
ReplyDeletethank u so much
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